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"Shiv Tandav Stotra – Understanding the Meaning of the Second Shlok: A Divine Journey" Shiv Tandav Stotra, third eye of Shiva, Ganga in matted hair, Agya chakra, 

Updated: 5 days ago

By: Akanksha Shrivastava

Publisher Aadhya Publishing House


Shiv Tandav

I hope you all have enjoyed reading the first blog on Shiv Tandav Stotra and it really made you all easily understand the meaning of first shlok.


Now today we will understand the second shlok which is :


जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।

धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षण मम: ॥२॥


Jata kata hasambhrama bhramanilimpanirjhari

Vilolavichivalarai virajamanamurdhani

Dhagadhagadhagajjva lalalata pattapavake

Kishora chandrashekhare ratih pratikshanam mama ||2


For understanding the second shlok we all must have to keep this one thing in mind that, in this whole hymn king Ravan is describing the ferocious form of Lord Shiv in which Lord Shiv is performing a wild and fierce dance called Tandav.

So the main thing which we need to understand first is that, in the second shlok King Ravan says:


प्रतिक्षणं मम:……रतिः

pratikshanam mam….Ratih


Meaning – Every moment I find immense pleasure


Now where I find this pleasure?


किशोरचंद्रशेखरे

Kishora chandrashekhare


Meaning – on the top of Lord Shiv’s head , I see the newmoon (kishore chandra)


Now again where I find this pleasure?


Lalalata pattapavake

ललाटपट्टपावके


Meaning – in the fire (paavake) which is there on the forehead (lalaatpatta) of Lord Shiv.



How this fire burning on shiv’s forehead?


धगद्धगद्धगज्ज्वलत

Dhagadhagadhagajjvalat


Meaning- The fire is so untamed that it is making a sound like dhagad dhagad dhagad and it is shining enormously bright.


So the meaning till now is :


“I find immense pleasure, in the wild fire on Lord Shiv’s forehead, which is blazing because of the fully opened third eye of Mahadev like fully awakened Agya chakra. Also I find this pleasure in new moon on the top of the head of the lord”


Now Ravan says I find immense pleasure in:


मूर्धनि।

Murdhani


Meaning – the area on the top of Mahadev’s head.


Now what is there on the top of shiv’s head?


विलोलवीचिवल्लरी विराजमान

Vilolavichivalarai virajamana


Meaning – on the top of Shiv’s head there is the abode of unstable stormy wavelets.


Now the wavelets of what?


निलिंपनिर्झरी

Nilimpanirjhari


Meaning- The turbulent stormy unstable wavelets of the auspicious river Ganga.


Now why the wavelets of Ganga is turbulent?


संभ्रम भ्रमत

Sambhrama bhramat


Meaning – Because the Ganga is spiralling and flowing around in hysterical madness.


Now where and why the Ganga is flowing with madness ?


जटाकटाह

Jata katah


Meaning- In the jata (forest like matted hair) of Shiv who is performing Tandav.


So the complete meaning of this shlok is :


“I find the immense pleasure in the newmoon on the top of Lord Shiv’s head, in the fire on the forehead which is producing a blaze and extreme brightness of his third eye and in the area on the top of his head where the divine and auspicious river Ganga is contained within his matted lock of hair, where the holy water is flowing down with madness as he performs tandav”


I Hope you all are liking this series of learning Shiv Tandav Stotra and finding it interesting. if So then, kindly Share with the people around you


अर्थ (हिंदी में):


"मुझे आशा है कि आपने शिव तांडव स्तोत्र पर पहला ब्लॉग पढ़ने का आनंद लिया होगा और इससे आपको पहले श्लोक का अर्थ आसानी से समझने में मदद मिली होगी।आज हम दूसरे श्लोक को समझेंगे, जो इस प्रकार है:


जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी

विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।

धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके

किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षण मम: ॥२॥


दूसरे श्लोक को समझने के लिए सबसे पहले यह समझना आवश्यक है कि इस पूरे स्तोत्र में राजा रावण भगवान शिव के उस उग्र और प्रचंड रूप का वर्णन कर रहे हैं जिसमें वे तांडव नृत्य कर रहे हैं।


रावण कहते हैं:


"प्रतिक्षणं मम:……रतिः"


अर्थ: प्रत्येक क्षण मुझे अत्यधिक आनंद की अनुभूति होती है।


अब, यह आनंद कहाँ मिलता है?


"किशोरचंद्रशेखरे"


अर्थ: भगवान शिव के मस्तक पर जहाँ किशोर चंद्र (अर्धचंद्र) स्थित है।


अब आगे आनंद कहाँ मिलता है?


"ललाटपट्टपावके"


अर्थ: भगवान शिव के ललाट (माथे) पर स्थित अग्नि में।



शिव के ललाट की यह अग्नि कैसे जल रही है?


"धगद्धगद्धगज्ज्वलत"

अर्थ: यह अग्नि इतनी उग्र है कि 'धगद धगद' की ध्वनि उत्पन्न कर रही है और अत्यधिक चमक के साथ प्रज्वलित हो रही है।


अब तक का अर्थ:


"मुझे अत्यधिक आनंद की अनुभूति होती है भगवान शिव के ललाट की उस प्रचंड अग्नि में, जो उनके जाग्रत तीसरे नेत्र के कारण प्रज्वलित हो रही है और यह अग्नि पूर्णतः जाग्रत आज्ञा चक्र के समान तेजस्वी है। साथ ही, यह आनंद मुझे शिव के मस्तक पर स्थित अर्धचंद्र में भी मिलता है।"



अब रावण कहते हैं कि उन्हें आनंद मिलता है:


"मूर्धनि।"

अर्थ: भगवान शिव के सिर के शीर्ष भाग में।



अब, शिव के सिर के शीर्ष भाग में क्या है?


"विलोलवीचिवल्लरी विराजमान"

अर्थ: शिव के सिर के शीर्ष भाग में अस्थिर और तूफानी लहरों का निवास है।


ये लहरें किसकी हैं?


"निलिंपनिर्झरी"

अर्थ: पवित्र और शुभ गंगा नदी की अस्थिर और तूफानी लहरें।



गंगा की लहरें तूफानी क्यों हैं?


"संभ्रम भ्रमत"

अर्थ: क्योंकि गंगा उन्मत्त भाव से चक्कर काटते हुए प्रवाहित हो रही है।


अब गंगा इतनी उन्मत्त होकर कहाँ और क्यों बह रही है?


"जटाकटाह"


अर्थ: भगवान शिव के जटाजाल (जंगल जैसे जटाओं) में, जो तांडव करते हुए उनका श्रृंगार है।


पूरा श्लोक का अर्थ:


"मुझे भगवान शिव के मस्तक पर स्थित अर्धचंद्र में, उनके ललाट पर प्रज्वलित प्रचंड अग्नि में, और उनके सिर के उस हिस्से में जहाँ उनकी जटाओं में शुभ गंगा उन्मत्त भाव से बहती है, अत्यधिक आनंद की अनुभूति होती है। यह गंगा भगवान शिव के जटाजाल में तूफानी लहरों के साथ बहती है, जबकि शिव तांडव नृत्य कर रहे हैं।"


यह हिंदी अनुवाद श्लोक के गहन अर्थ को सरलता और पूर्णता के साथ प्रस्तुत करता है।

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3 Comments


Piyush Goel
Piyush Goel
2 days ago

आपने कितने सुंदर तरीके से समझाया हैं,

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Explained every bit in detail ❤️

Thanks alot for sharing 🙏🙏

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Thank you 😊

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